पहली बार किसी गज़ल को पढ़कर आंसू आ गए ।
शख्सियत, ए ‘लख्ते-जिगर’, कहला न सका ।
जन्नत.. के धनी पैर.. कभी सहला न सका ।
दुध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर,
मैं ‘निकम्मा’, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका ।
बुढापे का सहारा.. हूँ ‘अहसास’ दिला न सका
पेट पर सुलाने वाली को ‘मखमल, पर सुला न सका ।
वो ‘भूखी’, सो गई ‘बहू’, के ‘डर’, से एकबार मांगकर,
मैं .....